सियाचिन ग्लेशियर से मणिपुर तक एक जाबांज सिपाही शहीद कर्नल विप्लव त्रिपाठी

*सियाचिन ग्लेशियर से मणिपुर तक एक जाबांज सिपाही
शहीद कर्नल विप्लव त्रिपाठी*

सियाचिन ग्लेशियर से मणिपुर तक देश के दुश्मनों से लड़ते हुए आखिर में मणिपुर में भी अलगाववादियों से लड़ते हुए अपने 4 जवानों के अलावे अपनी पत्नी अनुजा और पुत्र अबीर के साथ प्राणोत्सर्ग करने वाले शहीद कर्नल विप्लव त्रिपाठी का समग्र सैन्य जीवन अदम्य साहस, अद्भुत पराक्रम और वीरोचित शौर्य का जीवंत दस्तावेज है।
सैनिक स्कूल रीवा से हाईस्कूल की शिक्षा पूरी करने के बाद 3 साल तक एनडीए खडग़वासला और फिर एक साल तक आईएमए देहरादून में कड़ा प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद 2003 में पासआउट होने वाले कर्नल विप्लव त्रिपाठी ने आईएमए में अंतिम पग रखने के बाद भारतीय सैन्य सेवा के लिए थल सेना में कमिशन हासिल किया था और तभी उन्हें दुनिया के सबसे ऊंचे और खतरनाक युद्धक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर में तैनात किया गया था। अपनी कमसिन उम्र में खून जमा देने वाले माइनस 40 के तापमान में बर्फीले युद्ध क्षेत्र में दुश्मनों और मौसम जैसे दो पाटों के बीच जहां एक दिन क्या कुछ घंटे भी नहीं रहा जा सकता वहां कर्नल विप्लव त्रिपाठी ने अपनी सैन्य सेवाओं के शुरुआती 6 महीने व्यतीत किये जहां हम और आप जैसे लोग 6 मिनट भी नहीं रह सकते।

सियाचिन में कर्नल विप्लव त्रिपाठी के तैनाती के दरम्यान हमारा उनसे किसी तरह से संपर्क नहीं था उन्हीं दिनों मीडिया से हमें यह खबर मिली कि ग्लेशियर में आइस स्कूटी से जा रहे आर्मी के एक डॉक्टर बर्फ की एक खोह में स्कूटी समेत गुम हो गए। इस खबर ने हमें बैचेने कर दिया। हम विप्लव से संपर्क करने की भरसक कोशिश करते रहे पर उससे हमारा संपर्क नहीं हो पाया। बाद में विप्लव ने ही हमें बताया कि वह सकुशल है और आर्मी डॉक्टर की बॉडी नहीं मिली है। सियाचिन ग्लेशियर के बाद विप्लव की पोस्टिंग पठानकोट में हुई वहां उसे कैप्टन के पद पर पदोन्नति दी गई। विप्लव के पठानकोट में पदस्थ होने के दौरान हम अपने छोटे बेटे अनय के साथ पठानकोट गए हुए थे तभी हमने वहां वैष्णव देवी के दर्शन भी किए थे
पठानकोट के बाद विप्लव को कश्मीर वैली के एक और दुर्गम और दुरूह युद्धक्षेत्र कुपवाड़ा में पदस्थ किया गया। अपने कर्तव्यों के निर्वहन को लेकर विप्लव की संजीदगी को देखते हुए कुपवड़ा के जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल बाजवा ने विप्लव को अपना एडीसी बनाकर सीमाक्षेत्र की अहम जिम्मेदारी दी थी। कुपवाड़ा से पाकिस्तानी सरहद की दूरी बमुश्किल 10-12 किलोमीटर थी। कुपवाड़ा में विप्लव की तैनाती के दौरान ही भारतीय सैनिकों ने मुठभेड़ के दौरान पाकिस्तान पोषित करीब आधा दर्जन आतंकवादियों को मार गिराया था। हम कुपवाड़ा भी गए थे और वहां आर्मी कैंपस के सामने सुबह आंख खुलते ही हजारों-हजार की तादाद में ताजा खिले गुलाब को देखने के बाद हमें लगा कि कश्मीर को यूं ही धरती का स्वर्ग नहीं कहते। वहीं से हमने श्रीनगर में डल लेक, पहलगाम और गुलमर्ग की सैर की थी। उसी दरम्यान हम पहली बार हेलिकाप्टर से अमरनाथ गए थे तभी विप्लव ने हमें बताया था कि कैसे भारतीय जवानों ने गंदे पानी के गड्ढे में डूबकर दो आतंकवादियों को ढेर किया था।

सियाचिन से राजौरी तक लगातार खतरों से जूझते रहने के बाद पहली बार विप्लव की पोस्टिंग आईएमए देहरादून में इंस्ट्रक्टर के पद पर जरूर की गई थी लेकिन कार्यकाल पूरा करने से पहले ही उन्हें यूएन पीसकीपिंग फोर्स के लिए एक साल के लिए कांगों भेज दिया गया। इस बीच विप्लव का विवाह भी हो चुका था लेकिन उन्हें पत्नी को छोडक़र कांगों जाना पड़ा। कांगों से वापस लौटने के बाद दूसरी बार एक शांत क्षेत्र लखनऊ में विप्लव की पोस्टिंग हुई जहां रहते हुए पत्नी अनुजा ने बेटे अबीर को जन्म दिया और लखनऊ में बमुश्किल कार्यकाल पूरा करने से पहले ही विप्लव को एक और ऊंचे युद्धक्षेत्र उत्तर सिक्कम में तैनात किया गया था जहां हड्डियां चटका देने वाली ठंड ने विप्लव को चीन जैसे खतरनाक दुश्मन से जुड़े हिंदुस्तानी सरहद की पहरेदारी करनी पड़ी। सिक्किम में कैंप में सो रहे कर्नल विप्लव का टैंट अचानक आग की लपटों में घिर गया पर विप्लव ने वहां भी सामने खड़ी मौत को पूरी दिलेरी से बाय-बाय कर दिया। हालांकि उनका पूरा टेंट जलकर खाक हो गया। सिक्किम में रहते हुए एक कठिन प्रतियोगी परीक्षा में सफलता प्राप्त करने के बाद विप्लव और उनके छोटे भाई अनय का चयन आर्मी के प्रतिष्ठित संस्था स्टाफ कॉलेज वेलिंगटन के लिए हो गया जहां दोनों भाईयों ने एक वर्ष तक अध्ययन करने के बाद सफलता हासिल की। वहीं विप्लव को कर्नल के पद पर पदोन्नति भी दी गई।
वेलिंगटन में अध्ययन पूरी करने के बाद विप्लव को ऑपरेशन फस्ट स्ट्राइक मथुरा में पदस्थ किया गया। वहां करीब एक डेढ़ साल रहने के बाद विप्लव को मिजोरम की राजधानी आइजोल में 46 असम राइफल्स के सीओ के पद पर पदस्थ किया गया। जहां अपनी दो वर्ष के कार्यकाल के दौरान ही म्यांमार और बंग्लादेश के रास्ते हथियारों और मादक द्रव्यों की तस्करी करने वालों के खिलाफ लगातार कार्रवाई करते हुए कर्नल विप्लव त्रिपाठी ने तस्करों के पूरे नेटवर्क को तहस-नहस कर दिया।

मिजोरम में कर्नल विप्लव त्रिपाठी की कामयाबी को देखते हुए उन्हें नार्थ ईस्ट के एक और खतरनाक क्षेत्र मणिपुर में पदस्थ किया गया और साथ ही 46 असम राइफल्स को मणिपुर भेज दिया गया। मणिपुर आने के बाद म्यांमार से जुड़े सरहदी इलाकों का बारिकी से मुआयना करने के बाद यहां भी विप्लव ने ड्रग और हथियारों के तस्करों के खिलाफ दनादन कार्रवाई करते हुए ट्रकों में लदा कराड़ों रूपयों का मादक पदार्थ जब्त कर लिया। ड्रग स्मगरों के खिलाफ उनका अभियान जारी ही थी कि बीते 13 नवंबर को मणिपुर में एंबुश लगाकर एक कथित आतंकवादी हमले से जूझते हुए अपनी पत्नी अनुजा और 6 वर्ष के पुत्र अबीर के अलावे अपने 4 जवानों के साथ उन्होंने अपनी शहादत दर्ज की। उनके लहू से लिखी गई शहादत की यह इबारत कभी मिटाई नहीं जा सकती।
अपने समग्र सैन्य जीवन के दौरान सिर्फ लखनऊ और आईएमए देहरादून में अपने पदस्थापना के अलावे कर्नल विप्लव त्रिपाठी ने अनपी अधिकतर सेवाएं दुर्गम युद्ध क्षेत्रों में दी है। उनकी गिनती भारतीय सेना के उन विरले अधिकारियों में की जाती है जिसने बमुश्किल 20 वर्ष की सेवा अविध में राजौरी में पदस्थ होते हुए पाकिस्तान से जुड़े एलओसी, उत्तर सिक्किम में चीन से जुड़े एलएसी, दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन के अलावे कश्मीर और उत्तर पूर्व के आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों को अपनी जांबाज सेवाएं दी हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button